प्रीत की प्यास लिए मन में
प्रीत की प्यास लिये मन में
जीवन -पनघट पर जा बैठी
देखा जो पिया को राह खड़े
मैं जाने क्यूँ सकुंचा बैठी
नयन हुए जब चार पिया से
अपनी सुध-बुध खो बैठी
प्रीत की गगरी भर-भर कर
मैं नेह अपना छलका बैठी
मन में पिया की मूरत रख
मैं जीवन -पथ पर चल बैठी
मिलन हुआ सत जन्मों का
खुद को न्यौछावर कर बैठी
देखा पिया जब चंदा सा
मैं चाँदनी उनकी बन बैठी
चंचल सागर की लहरों पे,
जीवन की नाव चला बैठी
सावन की प्यासी सरगम में
अपनी भी तान मिला बैठी
पिय के हाथों की लकीरों में
मैं अपना भाग्य लिखा बैठी ..
इस से पहले कि सांझ ढले
मैं प्रेम का "दीप 'जला बैठी .
दीपिका "दीप "
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (26-04-2013) के चर्चा मंच 1226 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपका बहुत आभार ....
हटाएंसुंदर प्रस्तुति.....आभार .मेरे ब्लॉग आयें .
जवाब देंहटाएंआपके उत्साहवर्धन का शुक्रियां
हटाएंप्रियतम यह मन आरसी राखे काया थाप ।
जवाब देंहटाएंतामे छबि मनहर बसी जँह दरसे तँह आप ॥
भावार्थ : -- प्रियतम इस शरीर में यह ह्रदय दर्पण के सदृश्य स्थापित है|
जिसमें ऐसी सुन्दरता वासित है की जहाँ भी देखो वहाँ
आपका ही स्वरूप है ॥
बहुत सुंदर कहा आपने ..आभार
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद!
आभार आपका ......
हटाएंवाह्ह्ह्हह्ह ...बहुत ही सुंदर, मधुर और प्यारी रचना... सरसता और लयात्मकता से भरपूर... बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना से मुझे प्रोत्साहन मिला ...आभार ..
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