दृश्य हुआ अभिराम बहुत तब ,वलय पहन जब नभ निकला सतरंगी आभा से विस्मित ,दमक उठी अब धरा विकला देख-देख कर रूप अनूप अब ,मन ही मन संकुची वो मही हरा दुकूल झट ओढ़ लिया,आभा न कमतर उसकी कहीं पगडण्डी-नागिन बलखाती ,सरपट झटपट भाग रही मणि समझ कर मणिधर के सर ,ढूंढें व्याकुल व्याल यहीं गर्जन तर्जन बंद हुआ सब ,गगन लगे अब धुला-धुला धरती का हर कौना निखरा ,रूप दिखा खूब खिला -खिला दीपिका "दीप "
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