परिचय ...
क्यों हूँ भव में कौन हूँ मैं ,मन में करूं जब तनिक विचार
प्रति उत्तर पाऊं न जब मन से ,हो जाऊं तब बहुत लाचार
सोचती रहती विधना का ,ऐसा क्या वो वृहद उद्धेश्य
भेज दिया मुझे भव सागर ,आकंठ डूबी हूँ पल में नि:शेष
क्रन्दन करते लाचारों की, पीड़ा हरना मेरा काम ?
कामना -रथ नित पींगें भरता ,मैं कैसे रह लूँ निष्काम
मानवता हित करने मुझको ,क्या नित नूतन ऐसे कर्म
जान न पाई अब तक इतना ,क्या है मेरे जन्म का मर्म
विद्रूपताएं दूर करूं मैं ,अग जग से अन्याय भगे
सुख-शान्ति फैलादूँ भव में, क्या ऐसे मेरे भाग्य जगे
तिमिरांचल का नाम जो ले कोई , "दीप"की आभा जगमग करें
लक्ष्य-भ्रष्ट हो राह नहीं भटके ,कदम कोई भी न डगमग धरे
मात-पिता ने नाम दिया जब ,'दीपिका' सार्थक तो करूँ
परिचय मेरा खुद मिल जाएँ , ऐसे काव्य तो सृजन करूं
दीपिका "दीप "
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