शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

ये दिन ढल गया ...

 

                                                            
संध्या हुई दीप जल गया है
अब ये दिन ढल गया है

पंखी अम्बर का नाप माप
नीड़ों में अपने लौट गये है
गोधूलि में गऊओ की टोली
खेल रही अब धूल से होली

संध्या हुई दीप जल गया है
अब ये दिन ढल गया है

लहरें भी अब थक सों गई है
सागर में जाकर ले अंगडाई
पूरब दिशा फिर मुस्काई है
शशी से मिलने निशा आई है

संध्या हुई दीप जल गया है
अब ये दिन ढल गया है
संकेत कुछ इस  तरह हुआ है
थके पथिक लौट रहे घर अपने
 निगाहें मेरी द्वार पर टिकी है 
आहट कदमों की पास आ रुकी है

संध्या हुई दीप जल गया है
अब ये दिन ढल गया है

                                                                               दीपिका "दीप ''




                                                                 


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