चाहतों का सिला दीजिए...
बाद में फिर सज़ा दीजिए,
जाम पहले पिला दीजिए
हो गयी गर मैं बेहोश तो,
होश फिर से दिला दीजिए
प्यास की पीर साक़ी से है,
चाहतों का सिला दीजिए .
फिर ख़िजा ने उजाड़ा चमन,
आप ही गुल खिला दीजिए.
मंजिलें मिल सकें इश्क की ,
राह फिर से दिखा दीजिए.
नब्ज़ रुक रुक के चलती है क्यूँ,
धड़कनों को बता दीजिए .
कह रही कुछ ये बेताब शब्,
दीप कुछ अब जला दीजिये .
दीपिका "दीप "
वाह्ह्ह्हह्ह ...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है दीपिका जी... सारे ही शे'र बहुत उम्दा और शानदार हैं.. बहुत सी दाद ओ मुबारकबाद...
जवाब देंहटाएंफेसबुक के गज़ल सम्राट ने सराहा लगा गज़ल सार्थक हो गई .........
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