हो मानव जब तुम मानव से तो प्यार करो रे !
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे !!
कातर स्वर कितने नित्य तुम्हें पुकार रहे है !
पीड़ा से अपनी निश -दिन वे चीत्कार रहे है !!
बन पीड़ा हर सब पीड़ित जनों के त्रास हरो रे !
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे !! 1
कितनी ही श्वासें गर्भों में दम तोड़ रही है !
कलिया कितनी ही खिले बिन चटक रही है !!
मानव हो तो दानव सा मत काम करो रे !
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे !!2
तरुणाई कितनी लक्ष्य हीन हो भटक रही है !
माताएं कितनी वृद्धाश्रम में तड़प रही है !!
मझधार में डूबती नैया की पतवार बनो रे !
निराश हृदय में आशा का संचार करो रे !!3
हो मानव जब तुम मानव मन की थाह गहो रे !
क्षमा दया तप त्याग की मिसाल बनो रे !!
अब मानवता हित तेजी से हुंकार भरो रे !
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे !!4
दीपिका "दीप''
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जवाब देंहटाएंसुंदर ब्लॉग की बधाई
सुंदर रचनाओं का संकलन है
पुनः बधाई
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