गुरुवार, 16 मई 2013

जीवन के मोड़

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जीवन में हमारे कभी-कभी , ऐसे मोड़ भी आते है
कुछ राही अनजाने बन कर ,अनायास टकराते है

बन के सहारा साथी हमारा ,हम ही को लूट जाते है
भूख प्यास नींदें ही नहीं ,कई सपने छिन जाते है
पैठ जाते है अन्तस् में, इस तरह वे आते है
लाख करे कोशिश हम , फिर निकल नहीं पाते है

महल झूठ के नित्य प्रति ,यहाँ बनाए जाते है
नित्य नए फरेब के ही ताने बुने जाते है
हम तो बस बेबस हो कर ,आहें ही भर पाते है
लाख करे कोशिश पहचान ही नहीं पाते है

ओढ़े मुखोटे लोग अनगिनत ,चारों तरफ आते है
व्यथा सुनाए किसको ,हम दर्द न कोई पाते है
वफ़ा के बदले धोखा दे ,बेवफ़ा बन जाते है
लाख करे कोशिश हम ,प्रतिकार न कोई ले पाते है

देख उन्हें खिला-खिला हम भी तो खिल जाते है
बिन धागे के जाने क्यूँ फिर खींचे चले जाते है
विधना के हाथों खुद को परवश हम सदा पाते है
लाख करे कोशिश 'दीप "यह बुझते नहीं पाते है
दीपिका "दीप "

5 टिप्‍पणियां:

  1. Bilkul sahee likha hai. Aise hote hain log paar waise bhee hote hain jo achanak se aakar hamare apne ban jae hain.

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    1. आप तक मेरे दिल की बात पहुँची आभारी हूँ .इस उत्साहवर्धन हेतु

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  2. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    संजय कुमार
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. क्षमा सहित बहुत लम्बे समय पश्चात् आज अपने ब्लॉग की सुध ली .आपका आभार ,शीघ्र ही आपके ब्लोग्स का आनंद लूँगी ..बस कुछ दिन और माफ़ी ..

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  3. आप का तहे दिल से शुक्रिया ,बहुत व्यस्तता व एक साथ अनेक काम हाथ में लेने की प्रवृत्ति ने मुझे यहाँ आने से वंचित किया ,शीघ्र ही यहाँ उपस्थित हो आप सभी की रचनाओं का आनंद लूँगी ,सराहना हेतु आभार ,,,,,,,,,,

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