सोमवार, 3 जून 2013

तेरे बिना

सन्नाटा है पसरा तेरे बिना,
जग लगता सूना तेरे बिना
अब गीत अधर पे आते नहीं
हर नग्मा अधूरा तेरे बिना

हर ओर उदासी छायी है,
कैसी किस्मत ये पायी है,
हर पल जहाँ रौनक रहती थी
अब चुप सी छायी तेरे बिना

सारा आलम ये बहक गया,
आँखों से कजरा ढुलक गया,
बिन तेरे सजूँ मैं क्या सजना,
ये श्रृंगार अधूरा तेरे बिना.

आने को मौसम है प्यारा,
महकेगा उपवन ये न्यारा,
अब आ जा साजन पास मेरे,
नीरस है जीवन तेरे बिना.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (04 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. ब्लॉग प्रसारण की लिंक के द्वारा पहली बार आपके ब्लॉग पर पहुँची हूँ,अच्छा लगा....
    कॄपया कमेंट में वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें,...

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    1. आपका तहे दिल से शुक्रिया ,मैं प्रयत्न करती हूँ आपके निर्देश के पालन का .........

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  3. ब्लॉग प्रसारण की लिंक के द्वारा पहली बार आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा
    वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  4. विरह के भावों से गढ़ी सुन्दर रचना
    बेहतरीन
    साभार!

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    1. आपको मेरा यह अल्प प्रयास पसंद आया उत्साहवर्धन करने के लिये तहे दिल से शुक्रिया

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  5. प्यारा आवाहन ..
    शुभकामनायें इस लेखनी को !

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  6. सारा आलम ये बहक गया,
    आँखों से कजरा ढुलक गया,

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